मुलताई (अभय वाणी )धार्मिक पवित्र नगरी मुलताई संतों की नगरी के साथ ही आपसी भाईचारे की मिसाल भी है।
यहां सभी धर्म के लोग मिलकर होली और दीपावली की खुशियां साथ-साथ मनाते हैं तो ईद की खुशियां
भी साझी होती है। अपने पूर्वजों से मिली यह साझी विरासत को नई पीढ़ी परवान चढ़ा रही है। इसका
उदाहरण नेहरू वार्ड में छोटे मस्जिद के आंगन में दुर्गा उत्सव के समय दिखाई देता है। छोटी मस्जिद के
तीनों ओर की दीवारों से लगकर दुर्गा प्रतिमाएं आकार लेती है और मस्जिद में आने वाले नमाजी भी इन
मूर्ति कारों को हर संभव मदद करते दिखाई देते हैं। लगभग 50 वर्षों से छोटी मस्जिद के आंगन में
मूर्तियों को आकार दे रहे श्याम बाबू प्रजापति बताते हैं कि वह बाल अवस्था से ही अपने पिता सुंदरलाल
के साथ मस्जिद के सामने मूर्तियां बनाते हैं यहां मूर्ति बनाते उनकी तीसरी पीढ़ी है। मूर्तियों को आकार
देते समय अनेकों बार वर्षा होने लगती है ऐसे में मुस्लिम समाज के सभी लोग सहयोग करके इन
मूर्तियों को पानी से बचाते हैं नमाज के लिए आते जाते समय अनेक लोग प्रतिमाओं में कलर को लेकर
सुझाव भी देते हैं सुझाव देने वालों में पहले एक मौलाना भी थे जिन्हे रंगो की बहुत अच्छी जानकारी थी
। भीम प्रजापति के मिट्टी से सने हैं वह मूर्ति को आकार देते हुए सर उठा कर कहती है आपसी प्रेम
और भाईचारे के धागों से बुना यह तानाबाना हमें हमारे पूर्वजों से विरासत में मिला हुआ है जो सिर्फ
पवित्र नगरी मुलताई में ही देखा जा सकता है। हम वर्षों से यहां गणेश जी की दुर्गा जी की और अनेक
देवी-देवताओं की मूर्तियां इसी स्थान पर बनाते आ रहे हैं और जब मूर्तियां बन रही होती है तो मस्जिद
में नमाज अदा करने आने वाले लोग बहुत ही सावधानी बरतते हैं कि कहीं उनकी मोटरसाइकिल या
उनके कारण कहीं मूर्ति टूट ना जाए क्योंकि निर्माणाधीन काल में प्रतिमाएं बहुत ही नाजुक होती है।
लक्ष्मण प्रजापति मूर्तिकार कहते हैं कि इतने सालों में मुझे कभी यह अहसास ही नहीं हुआ कि यहां से
आने जाने वाले लोग किस धर्म के हैं और हम किस धर्म के हैं आपसी प्रेम हमें एक सूत्र से बांधे है।हाजी
समीम खान बताते हैं कि देश में कहां क्या चल रहा है हमको यह नहीं मालूम किंतु नगर में सभी धर्मों
के लोगों में आपसी रिश्ते हमेशा से ही मजबूत रहे है और सद्भावना की इससे बड़ी मिसाल और क्या
होगी की मस्जिद के आंगन में और पहले तो मस्जिद के कमरों में भी प्रतिमाओं का निर्माण होता था ।
सभी धर्म के लोग मिलकर बिठाते हैं दुर्गा प्रतिमा
ऋषियों की तपोभूमि मुलताई नगरी में आपसी सौहार्द पूर्वजों की विरासत है, और यही कारण है कि देश
के अन्य भागों में जहां जाति धर्म को लेकर द्वेष पनपता है नगर में आपसी सौहार्द की निर्मल ताप्ती
जल धारा बहती है। इसका एक उदाहरण ताप्ती तट पर भी देखा जा सकता है। जहां सभी धर्म के लोग
मिलकर दुर्गा प्रतिमा स्थापित करते हैं इसमें हिंदू धर्म के मानने वाले लोगों के साथ ही मुस्लिम समाज
के लोग भी बड़ी संख्या में सहभागिता निभाते हैं । सर्वधर्म समभाव दुर्गा उत्सव मंडल के सुरेश पौनिकर
बताते हैं कि हमारे मंडल में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी धर्म के लोगों सदस्य हैं जो पूरे 9 दिन मां
दुर्गा की पूजा आराधना में ना सिर्फ भाग लेते हैं बल्कि प्रसादी वितरण एवं विसर्जन तक साथ रहते हैं।