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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में दिए गए बयानों से देशभर में एक नई चर्चा छेड़ दी है। उनके बयानों में जनसंख्या संतुलन, मुस्लिम समुदाय, और भारत के वैश्विक दृष्टिकोण से जुड़े कई अहम मुद्दे शामिल थे।
जनसंख्या संतुलन पर विचार
भागवत ने कहा कि किसी भी समाज की प्रजनन दर 2.1 से कम नहीं होनी चाहिए। उनके मुताबिक, यह दर बनाए रखने के लिए हर परिवार में कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि यदि यह संतुलन बिगड़ता है तो समाज का अस्तित्व खतरे में आ सकता है। इसके साथ ही, उन्होंने 1998 और 2002 में बनी जनसंख्या नीतियों का जिक्र करते हुए इन्हें देश के भविष्य के लिए जरूरी बताया।
मुस्लिम समुदाय के लिए संदेश
मुस्लिम समुदाय पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि उन्हें भारत में डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने सभी धर्मों से आग्रह किया कि श्रेष्ठता का भाव त्यागें और साथ मिलकर रहना सीखें। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी समुदाय को यह भावना छोड़नी होगी कि वह सही है और बाकी गलत। यह बयान विशेष रूप से जनसंख्या असंतुलन के सवाल पर दिया गया, जो राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।
वैश्विक संदर्भ और भारत की प्रगति
भागवत ने इजरायल-हमास संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत अपनी "वसुधैव कुटुंबकम" की अवधारणा के कारण दुनिया में अलग पहचान बना रहा है। उन्होंने भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा और योग के वैश्विक प्रभाव का जिक्र किया। उनका कहना था कि भारत का यह दृष्टिकोण दुनिया के लिए एक उदाहरण है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
भागवत के इन बयानों पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने इसे संघ की दीर्घकालिक विचारधारा से जोड़ते हुए कहा कि यह चुनावी माहौल को प्रभावित करने की कोशिश है। वहीं, संघ समर्थकों ने इसे भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक भविष्य के लिए आवश्यक बताया।
विशेषज्ञों की राय
सामाजिक विश्लेषकों का कहना है कि भागवत के ये बयान संघ की जनसंख्या नीति और सांप्रदायिक समरसता पर केंद्रित सोच को दर्शाते हैं। आने वाले चुनावों के संदर्भ में भी इन बयानों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
(यह खबर विभिन्न मीडिया स्रोतों से ली गई जानकारी पर आधारित है।)