उन्होंने यह भी बताया कि उनके अपने जिले में ही ऐसे 100 शिक्षक हैं। मंत्री का यह बयान न केवल शिक्षा विभाग में हलचल मचा रहा है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी सवाल खड़े कर रहा है।
"नैतिकता का सवाल"
कार्यक्रम के बाद पत्रकारों ने जब इस मुद्दे पर सवाल किया, तो मंत्री ने इसे "नैतिकता का प्रश्न" बताते हुए कहा कि शिक्षकों को अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी और नैतिकता के आधार पर करना चाहिए। हालांकि, इस बयान के बाद आलोचकों ने मंत्री पर ही निशाना साधा।
आलोचनाओं के घेरे में मंत्री
विपक्षी नेताओं और शिक्षा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि यदि मंत्री को अपने विभाग में गड़बड़ियों की जानकारी थी, तो उन्हें मंच पर सार्वजनिक रूप से बयान देने के बजाय इन समस्याओं को दूर करने के ठोस कदम उठाने चाहिए थे। कुछ आलोचक तो यह भी कह रहे हैं कि यदि मंत्री अपनी ही विभागीय व्यवस्थाओं को सुधारने में असफल हो रहे हैं, तो उन्हें खुद नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए।
जनता की राय क्या है?
मंत्री के इस बयान ने शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक जिम्मेदारी पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या मंत्री का यह बयान शिक्षकों को सुधारने की मंशा से था, या यह केवल राजनीति का हिस्सा है? क्या केवल बयानबाजी से विभाग में सुधार होगा, या इसके लिए ठोस नीतियों की आवश्यकता है?
आपकी क्या राय है? क्या मंत्री का बयान सही है, या यह एक राजनीतिक रणनीति है? अपनी राय हमें जरूर बताएं।