छिन्‍दवाड़ा/31 जनवरी 2025/ वर्ष 2025 नई कहानी आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण कथाकार मोहन राकेश का जन्मशती वर्ष है। इस परिप्रेक्ष्य में गत दिनों म.प्र.हिन्दी साहित्य सम्मेलन की जिला इकाई द्वारा हिन्दी प्रचारिणी समिति के कक्ष में "मोहन राकेश-आधुनिक हिंदी साहित्य के नायक" विषय पर वरिष्ठ प्रगतिशील विचारक श्री महेश सोनी की अध्यक्षता में चर्चा संपन्न हुई। कार्यक्रम में अतिथियों ने श्री मोहन राकेश के एक उद्धरण पर पोस्टर का विमोचन भी किया। उल्लेखनीय है कि 8 जनवरी 1925 को पंजाब के अमृतसर में जन्मे श्री मोहन राकेश ने सर्वप्रथम कहानी के क्षेत्र में सफल लेखन के बाद नाट्य-लेखन में ख्याति के नये आयाम स्थापित किये। हिंदी नाटकों में भारतेंदु और प्रसाद के बाद का युग श्री मोहन राकेश का युग है, ऐसा कह सकते हैं। उन्होंने हिंदी में हो रहे नाट्य-लेखन को रंगमंच पर प्रतिष्ठित किया। 'आषाढ़ का एक दिन','आधे अधूरे' और ‘लहरों के राजहंस’ उनके महत्वपूर्ण नाटक हैं। वे संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित लेखक हैं।

         

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ प्रगतिशील विचारक श्री महेश सोनी ने श्री मोहन राकेश को युगीन कहानीकार और नाटककार निरूपित करते हुये कहा कि ऐसे कार्यक्रम निरंतर होते रहना चाहिये। कार्यक्रम में प्रथम वक्ता एवं "भाभी जी घर पर हैं" धारावाहिक के मुख्य किरदार श्री पंकज सोनी ने कहा कि किसी बीमारी का इलाज तभी संभव है जब उसे डायग्नोज़ किया जाये। यदि समाज बीमार है तो उस बीमारी का इलाज तभी संभव है जब उसके कारणों का पता लगाया जाये। समाज की पहली इकाई परिवार है और परिवार की पहली इकाई व्यक्ति ख़ुद है। नयी कहानी आंदोलन में व्यक्ति के मनोविज्ञान पर ज्यादा चर्चा हुई, किन्तु श्री मोहन राकेश कहानी के साथ ही नाटक के क्षेत्र में नये युग का सूत्रपात किया। उन्होंने श्री मोहन राकेश के तीनों नाटक'आषाढ़ का एक दिन','आधे अधूरे' और ‘लहरों के राजहंस’ के कथानकों, विषयवस्तु और चरित्रों पर विस्तार से चर्चा करते हुये वर्तमान सामाजिक परिवेश में अभी भी इन नाटकों की प्रासंगिकता को उद्देश्यपूर्ण बताया। राष्ट्रपति पुरूस्कार प्राप्त शिक्षक एवं वरिष्ठ कहानीकार श्री दिनेश भट्ट ने कहा कि नई कहानी के उद्भव और विकास में श्री मोहन राकेश का अग्रणी स्थान है। उन्होंने स्वतंत्रता के बाद के भारत की परिवर्तित स्थिति और बदली हुई मानसिकता को विश्वसनीय रूप से रेखांकित किया। उनकी कहानी "एक ठहरा हुआ चाकू" महानगरीय परिवेश की चरित्रगत समस्या को तथा कहानी "परमात्मा का कुत्ता" सरकारी तंत्रों की अमानवीयता रेखांकित करती है। "मलबे का मालिक" कहानी में भारत पाक विभाजन के बाद शरणार्थियों की पीड़ा और विस्थापन का दर्द अभिव्यक्त होता है। उनकी कहानियों में आधुनिक भाव बोध की द्वंदशीलता, लाक्षणिकता और हास्य व्यंग्य के साथ ही गहरी व्यंजना दिखती है। कार्यक्रम में संस्था की सचिव सुश्री शेफाली शर्मा ने श्री मोहन राकेश के एक उद्धरण पर आधारित बनाये गये पोस्टर का वाचन करने के साथ ही इस पोस्टर का वितरण भी किया। कार्यक्रम का संचालन नाट्यकर्मी श्री सचिन वर्मा और आभार प्रदर्शन युवा साहित्यकार एवं चित्रकार श्री रोहित रूसिया ने किया । इस अवसर पर संस्था के पदाधिकारी सर्वश्री हेमेंद्र कुमार राय, ओमप्रकाश "नयन", मोहन कुमार डेहरिया, डॉ.श्रीमती मनीषा जैन, स्वप्निल जैन, डॉ.अमर सिंह, राजकुमार चौहान, सुरेन्द्र वर्मा और अन्य श्रोतागण उपस्थित थे । कार्यक्रम में हिन्दी प्रचारिणी समिति के प्रति भी आभार व्यक्त किया गया।
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